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Kesariya

केसरिया: नयागांव के युवक की हरियाणा में हुई मौत

थाना क्षेत्र के नयागांव के एक नवयुवक की रविवार को हरियाणा के गुरुगावां में सड़क दुर्घटना में मौत हो गयी। मंगलवार को शव पहुंचते ही घर में कोहराम मच गया।देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ गई। ग्रामीणों ने नम आंखों से विदाई दी। उसका दाह संस्कार कर दिया गया। मृतक नयागाँव के मदन पासवान का 22 वर्षीय रितिक कुमार बताया जाता है।

परिजनों ने बताया कि दिल्ली के नजदीक गुरुगावां में रह कर किसी निजी कम्पनी में काम करता है। गत रविवार को गुरुगावां में शाम को बाइक से समान खरीदने बाजार जा रहा था कि विपरीत दिशा से आ रहे बाइक से आमने सामने टक्कर हो गई। रितिक बुरी तरह जख्मी हो गया, जिसे मौजुद लोगों ने अस्पताल पहुँचाया लेकिन अस्पताल में वह दम तोड़ दिया। वह तीन भाइयों में सबसे बड़ा था। अभी शादी भी नहीं हुई थी। घर का बड़ा चिराग ही बुझ गया यह कह कर उसके पिता बार बार बेहोश हो जाते थे। पुरे गांव में मातमी सन्नाटा छाया हुआ है।

Source: bhaskar.com

सुंदरापुर में करंट लगने से युवक की हुई मौत

केसरिया थाना क्षेत्र के सुंदरापुर गांव में सोमवार को बिजली का करंट लगने से ललन साह नामक युवक की घटना स्थल पर ही मौत हो गई।

बताया जाता है कि ललन साह का आटा चक्की मशीन बिजली से संचालित होता है। सोमवार की सुबह जब ललन साह ग्राहक का गेंहू तौलने के लिए तराजू टांग रहे थे तो तराजू में ही करंट आ गया। जिसके संपर्क में आते ही उनकी मौत घटना स्थल पर ही हो गई। ललन साह अपने परिवार का एक मात्र कमाऊ सदस्य था। उसकी छह संतान हैं। जिसमें तीन पुत्र व तीन पुत्री शामिल है। जो छोटे छोटे हैं। उसकी पत्नी अमरावती देवी का रो रो कर बुरा हाल है। वह रोते रोते बेहोश हो जा रही थी। पूरा गांव इस घटना से मर्माहत है। इस हृदय विदारक घटना को सुनकर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी ।

केसरिया स्तूप की भव्यता की छांव में चाहिए आवश्यक सुविधाएं

केसरिया का नाम सामने आते ही विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप की तस्वीर जेहन में उभरने लगती है। अगर किसी ने नहीं देखा है तो इस ऐतिहासिक स्मारक को देखने की चाह मजबूत होने लगती है। हालांकि, अब तक इस स्तूप के उत्खनन का काम पूरा नहीं हो सका है। मगर इस दिशा में तेजी से काम हो रहे हैं। भारतीय पुरातत्व संरक्षण (एएसआइ) द्वारा इस स्मारक के उत्खनन एवं संरक्षण का काम किया जा रहा है। प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में यहां देशी-विदेशी सैलानी आते हैं। स्तूप के दीदार से रोमांचित भी होते हैं। यहां की यादों को सहेजते हुए लौट जाते हैं। मगर इन यादों में कुछ ऐसी बातें भी होती हैं, जिन्हें सुखद नहीं कहा जा सकता। बौद्ध स्तूप को देखने सात समंदर पार से आए इन सैलानियों की बुनियादी जरूरतों के लिए अब तक यहां संरचनाओं को विकसित नहीं किया जा सका है। जो थोड़े बहुत हैं भी वे अभी उपयोग की स्थिति में नहीं हैं। जाहिर है कि इन कटु अनुभवों को भी पर्यटक अपने साथ ले जाते हैं। मोतिहारी से संजय कुमार सिंह की रपट।

आधारभूत संरचनाओं का है अभाव केसरिया बौद्ध स्तूप को देखने आने वाले पर्यटकों के लिए स्तूप के आसपास बुनियादी जरूरतों को लेकर संरचनाएं विकसित नहीं की जा सकीं हैं। हालांकि, इस मामले में कुछ तकनीकी अड़चनें भी हैं। स्तूप के दो सौ मीटर की परिधि में किसी भी तरह का निर्माण कार्य वर्जित है। इस दायरे में केवल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ही कुछ कर सकता है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए शौचालय से लेकर शुद्ध पेयजल तक का अभाव है। आवासन की भी कोई व्यवस्था अब तक आकार नहीं ले सकी है। स्तूप परिसर में एएसआइ द्वारा हाल ही में शौचालय का निर्माण शुरू किया गया है। वहीं, बिहार सरकार द्वारा स्तूप परिसर से बाहर स्टेट हाइवे 74 के किनारे पर्यटकों के लिए कैफेटेरिया एवं पार्क के निर्माण की पहल की गई है। भवन व चहारदीवारी का काम पूरा हो गया है। मगर सड़क से कैफेटेरिया के बीच अब तक रास्ता नहीं है। परिणाम स्वरूप इस व्यवस्था का भी लाभ पर्यटकों को नहीं मिल रहा है। इससे पहले स्तूप से करीब चार किलोमीटर दूर प्रखंड कार्यालय परिसर में भी पर्यटक भवन का निर्माण कराया गया। मगर उसकी अव्यवहारिक भौगोलिक स्थिति पर्यटकों के लिए हितकर नहीं है। इस भवन का उपयोग सरकारी कामकाज के लिए हो रहा है। वाहन पड़ाव की भी है दरकार स्तूप की भव्यता को देखने यहां प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में पर्यटक आते हैं। उनके साथ वाहनों का काफिला भी होता है। मगर उन वाहनों के लिए स्तूप के आसपास कोई पड़ाव नहीं है। ऐसी स्थिति में इन वाहनों को सड़क किनारे ही खड़े कर दिए जाते हैं। स्टेट हाइवे की अति व्यस्त सड़क के किनारे खड़े वाहनों से उतरना-चढ़ना काफी जोखिम भरा काम होता है। हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। पर्यटकों की आवाजाही के कारण इस स्थान पर भीड़भाड़ बनी रहती है। पर्यटक सूचना केंद्र का अभाव विश्व प्रसिद्ध इस ऐतिहासिक स्थल पर पर्यटन विभाग की ओर से अब तक कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया गया है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए सूचना केंद्र भी स्थापित नहीं किया जा सका है। खासकर विदेशी पर्यटकों को कई तरह की जानकारियों की दरकार होती है। ज्यादातर समूह में ही पर्यटक आते हैं। यहां तक की कई बार बाइक से भी पर्यटकों को आते-जाते देखा गया है। ये यहां आने के बाद आसपास के दर्शनीय स्थलों के बारे में जानना भी चाहते हैं। मगर भाषाई दिक्कत भी सामने होती है। आवासान की नहीं है व्यवस्था वर्ष 1998 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा स्तूप का उत्खनन कार्य प्रारंभ किया गया था। पूर्व में इसे देउर अथवा राजा वेणु के गढ़ के रूप में जाना जाता था। उत्खनन में मिले साक्ष्य के आधार पर इसे बौद्ध स्तूप घोषित किया गया। तब से सैलानियों के आने-जाने का सिलसिला शुरू हो गया। मगर इतने समय बीत जाने के बाद भी पर्यटकों के लिए आवासन की व्यवस्था नहीं हो सकी। जो हुई उसका उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। ऐसे में पर्यटकों का ठहराव केसरिया में नहीं हो पाता है। कई बार ऐसी स्थिति सामने आई है जब कोई अकेला पर्यटक देर शाम यहां पहुंचा और उसे आवासन की समस्या से जूझना पड़ा है। उन्हें जिला परिषद की जीर्ण शीर्ण विश्राम गृह में रुकना पड़ा। हालांकि, निजी तौर पर अब कुछ विकल्प तैयार हुए हैं। मगर उनकी क्षमता बेहद कम है।

source: jagran.com

सत्तरघाट पुल के निर्माण कार्य को रैयतों ने रोका

केसरिया के समीप गंडक नदी पर सत्तरघाट पुल के निर्माण कार्य को रैयतों द्वारा सोमवार को पूर्ण रूप से बाधित कर दिया गया। उन्होंने पुल पर ही धरना देते हुए अपनी मांगों के समर्थन में उग्र प्रदर्शन किया। वे रैयतों की बकाए राशि का भुगतान एक साथ करने की मांग पर अड़े हुए हैं। कार्य बाधित होने की सूचना पर पहुंचे डीसीएलआर आदित्य कुमार झा ने प्रदर्शनकारियों से बात कर 28 फरवरी तक का समय मांगा। जबकि रैयतों ने कहा कि 28 तक हमलोग यहीं बैठेंगे। सभी का भुगतान कर दिया जाए और कार्य को पुन: सुचारू करा दिया जाएगा।

करीब 7 वर्ष पूर्व ही सड़क निर्माण कंपनी ने कार्य को शुरू कर दिया। उस व़क्त से लेकर आज तक रैयतों द्वारा अंचलाधिकारी कार्यालय से लेकर जिला भूअर्जन पदाधिकारी के कार्यालय का चक्कर लगाया जाता रहा। इतने लंबे अंतराल के बाद भी ढेकहा व सुंदरापुर गांव के 73 व्यक्तियों का भुगतान करीब 10 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान बाकी है।

मौके पर पहुंचे डीसीएलआर ने कहा कि अधिकारी परीक्षा कार्य में व्यस्त हैं। तीन दिन बाद गांव में ही बैठ कर मामले का निष्पादन कर जिला को सूचित कर दिया जाएगा। पैसे की जगह मिल गई बैसाखी पुल निर्माण को लेकर ढेकहा निवासी गोपाल महतो की भी भूमि अधिगृहित कर ली गई है। पैसे के भुगतान के लिए भागदौड़ के क्रम में सड़क दुर्घटना में पैर टूट गया। मात्र दस हजार के हिस्से के लिए पैर में स्टील डालने में करीब 40 हजार रुपये खर्च कर लिए।

बसंत ¨सह ढेकहा निवासी ने बताया कि करीब 6 माह से दिल्ली से नौकरी छोड़ घर पर बैठा हूं। लड़की की शादी भी तय कर लिया, पैसे के भुगतान के इंतजार में दिन तय नहीं हो पा रहा है।

कई ऐसे भी रैयत भी हैं जो अपनी ¨जदगी के आखिरी मुकाम पर आकर पैसे के लिए दौड़ लगा रहे हैं। इनमे 80 वर्षीय तेज प्रताप नरायन कुंअर, 82 वर्षीय सुदिष्ट ¨सह, 75 वर्षीय शिवपूजन ¨सह, 85 वर्षीय हरि महतो, 77 वर्षीय कैलाश पति कुंअर आदि शामिल हैं।

source: jagran.com