Skip to content Skip to left sidebar Skip to footer

केसरिया स्तूप की भव्यता की छांव में चाहिए आवश्यक सुविधाएं

केसरिया का नाम सामने आते ही विश्व प्रसिद्ध बौद्ध स्तूप की तस्वीर जेहन में उभरने लगती है। अगर किसी ने नहीं देखा है तो इस ऐतिहासिक स्मारक को देखने की चाह मजबूत होने लगती है। हालांकि, अब तक इस स्तूप के उत्खनन का काम पूरा नहीं हो सका है। मगर इस दिशा में तेजी से काम हो रहे हैं। भारतीय पुरातत्व संरक्षण (एएसआइ) द्वारा इस स्मारक के उत्खनन एवं संरक्षण का काम किया जा रहा है। प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में यहां देशी-विदेशी सैलानी आते हैं। स्तूप के दीदार से रोमांचित भी होते हैं। यहां की यादों को सहेजते हुए लौट जाते हैं। मगर इन यादों में कुछ ऐसी बातें भी होती हैं, जिन्हें सुखद नहीं कहा जा सकता। बौद्ध स्तूप को देखने सात समंदर पार से आए इन सैलानियों की बुनियादी जरूरतों के लिए अब तक यहां संरचनाओं को विकसित नहीं किया जा सका है। जो थोड़े बहुत हैं भी वे अभी उपयोग की स्थिति में नहीं हैं। जाहिर है कि इन कटु अनुभवों को भी पर्यटक अपने साथ ले जाते हैं। मोतिहारी से संजय कुमार सिंह की रपट।

आधारभूत संरचनाओं का है अभाव केसरिया बौद्ध स्तूप को देखने आने वाले पर्यटकों के लिए स्तूप के आसपास बुनियादी जरूरतों को लेकर संरचनाएं विकसित नहीं की जा सकीं हैं। हालांकि, इस मामले में कुछ तकनीकी अड़चनें भी हैं। स्तूप के दो सौ मीटर की परिधि में किसी भी तरह का निर्माण कार्य वर्जित है। इस दायरे में केवल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ही कुछ कर सकता है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए शौचालय से लेकर शुद्ध पेयजल तक का अभाव है। आवासन की भी कोई व्यवस्था अब तक आकार नहीं ले सकी है। स्तूप परिसर में एएसआइ द्वारा हाल ही में शौचालय का निर्माण शुरू किया गया है। वहीं, बिहार सरकार द्वारा स्तूप परिसर से बाहर स्टेट हाइवे 74 के किनारे पर्यटकों के लिए कैफेटेरिया एवं पार्क के निर्माण की पहल की गई है। भवन व चहारदीवारी का काम पूरा हो गया है। मगर सड़क से कैफेटेरिया के बीच अब तक रास्ता नहीं है। परिणाम स्वरूप इस व्यवस्था का भी लाभ पर्यटकों को नहीं मिल रहा है। इससे पहले स्तूप से करीब चार किलोमीटर दूर प्रखंड कार्यालय परिसर में भी पर्यटक भवन का निर्माण कराया गया। मगर उसकी अव्यवहारिक भौगोलिक स्थिति पर्यटकों के लिए हितकर नहीं है। इस भवन का उपयोग सरकारी कामकाज के लिए हो रहा है। वाहन पड़ाव की भी है दरकार स्तूप की भव्यता को देखने यहां प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में पर्यटक आते हैं। उनके साथ वाहनों का काफिला भी होता है। मगर उन वाहनों के लिए स्तूप के आसपास कोई पड़ाव नहीं है। ऐसी स्थिति में इन वाहनों को सड़क किनारे ही खड़े कर दिए जाते हैं। स्टेट हाइवे की अति व्यस्त सड़क के किनारे खड़े वाहनों से उतरना-चढ़ना काफी जोखिम भरा काम होता है। हमेशा दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। पर्यटकों की आवाजाही के कारण इस स्थान पर भीड़भाड़ बनी रहती है। पर्यटक सूचना केंद्र का अभाव विश्व प्रसिद्ध इस ऐतिहासिक स्थल पर पर्यटन विभाग की ओर से अब तक कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया गया है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए सूचना केंद्र भी स्थापित नहीं किया जा सका है। खासकर विदेशी पर्यटकों को कई तरह की जानकारियों की दरकार होती है। ज्यादातर समूह में ही पर्यटक आते हैं। यहां तक की कई बार बाइक से भी पर्यटकों को आते-जाते देखा गया है। ये यहां आने के बाद आसपास के दर्शनीय स्थलों के बारे में जानना भी चाहते हैं। मगर भाषाई दिक्कत भी सामने होती है। आवासान की नहीं है व्यवस्था वर्ष 1998 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा स्तूप का उत्खनन कार्य प्रारंभ किया गया था। पूर्व में इसे देउर अथवा राजा वेणु के गढ़ के रूप में जाना जाता था। उत्खनन में मिले साक्ष्य के आधार पर इसे बौद्ध स्तूप घोषित किया गया। तब से सैलानियों के आने-जाने का सिलसिला शुरू हो गया। मगर इतने समय बीत जाने के बाद भी पर्यटकों के लिए आवासन की व्यवस्था नहीं हो सकी। जो हुई उसका उपयोग ही नहीं हो पा रहा है। ऐसे में पर्यटकों का ठहराव केसरिया में नहीं हो पाता है। कई बार ऐसी स्थिति सामने आई है जब कोई अकेला पर्यटक देर शाम यहां पहुंचा और उसे आवासन की समस्या से जूझना पड़ा है। उन्हें जिला परिषद की जीर्ण शीर्ण विश्राम गृह में रुकना पड़ा। हालांकि, निजी तौर पर अब कुछ विकल्प तैयार हुए हैं। मगर उनकी क्षमता बेहद कम है।

source: jagran.com

0 Comments

There are no comments yet

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.